गलेमें क्यों पहनी माला !
( तर्ज : गेला हरी कुण्या गांवा ... )
गलेमें क्यों पहनी माला ?
बदनपर भस्म चढा डाला ।
लगाया चन्दन का टीला !!
पीता प्याला !
प्याला शराबवाला ! ॥ टेक ॥
करता तीरथ जा - जाके ,
नहाता गंगामे बाके |
दर्शन साधू संतोंके ,
करता सीर झुका करके ।
फिरभी अक्कल नहिं आयी ,
पीकर पड़ता है नाला ।
पीता प्याला ,
प्याला नशेवाला ||१||
जिसने शराब घर लाया ,
उसने घरही उजड़ाया ।
किसने इन्सानी पाया ?
पिया तो जिन्दगिसे खोया ।
तुझको किसने सिखाया हैं ?
घरका मुंह करने काला ।
पीता प्याला ,
प्याला नशेवाला ! ॥२ ॥
किसको तुझे फँसाना था ,
तेरा सब धन लुटाना था ।
तुझे दुनियाँसे मिटाना था ,
चारोंमें नाक कटाना था !
इसी कारणसे छंद दिया ,
वारे तू भोला - भाला ॥
पीता प्याला , प्याला नशेवाला ॥३ ॥
तेरा घर नहिं था ऐसा ,
तमाशा तुने किया कैसा ।
गँवाया शराब में पैसा ,
फिरता मुरदे के जैसा ॥
तुकड्यादास कहे , सुनले !
लगा दे , व्यसनोंको ताला ।
पीतों प्याला ,
प्याला नशेवाला ! ॥४।।
नागपुर से गोंदिया- प्रवास
दि . २७ - ९ -६२
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